बुधवार, 31 दिसंबर 2008

हैप्पी न्यू इयर!

एक व्यक्ति के साथ पुलिस बल था.बच्चे ने पूछा-पिताजी!यह आदमी कोनहै?पिता ने कहा-ये नेता है.बच्चे कहा-ठीक है समझ गया.थोडी देर बाद बच्चे ने फ़िर देखा एक व्यक्ति के साथ चारो ओर पुलिस वाले चल रहा थे.बच्चे ने पूछा -पिताजी!क्या यह भी नेता है?पिता ने कहा- नही,यह नेता नही चोर है.बचे ने कहा समझ गया,जिनके साथ पुलिस वाले होते है वे चोर होते है,लेकिन पिताजी मै यह नही समझ पा रहा हूं की पहले वाले नेता और दूसरा चोर कैसे हुआ?पिता ने कहा-बेटा यही तो जीवन है.पहले में पुलिस उसके अधीन है.और दूसरा वाला पुलिस के अधीन है.ईश्वर ने आपको भी पांच पुलिस वाले दिए है.कान,नाक,आँख,जीभ और स्पर्श के रूप में पांच पुलिस वाले है.अगर आप इनके अधीन चल रहे है तो आप चोर है और ये आपके अधीन चल रहे है तो आप नेता है.अब आप क्या है?ज़रा ठंढे दिमाग से सोचिए।

आपको और आपके सहपरिवार को,

नए साल की ढेरो शुभकामनाये।

हैप्पी न्यू इयर।

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

मैने ख़ुद को जानकर तन्हा किया है!

अक्से-यादे-यार को धुंधला किया है,
मैंने ख़ुद को जानकर तन्हा किया है।
भूल कर तुझको पशेमा हूँ बहुत मै,
लोग कहते है बहुत अच्छा किया है।
दिन ढले और शाम का दीदार हो फ़िर,
काम दिन भर इसलिए इतना किया है।
जितनी शम्मे है हवा को सोंप दूँ फ़िर,
कोन पूछेगा की क्यों एसा किया है।
शहर ये आबाद था शाहिद हूँ मै भी,
किस की वहशत ने इसे सहरा किया है।


शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

सवाल ?

बताइए ओ कोन सी ऐसी चीज है, और कोन सा एसा पल,या क्षण है, जो .बड़े-बड़े महात्माओ,और बुढे और बच्चो को भी बदलने पर मजबूर कर देता है?

रविवार, 21 दिसंबर 2008

कभी साया है,कभी धुप मुकद्दर मेरा,

कभी साया है,कभी धुप मुकद्दर मेरा,
होता रहता है यूं ही कर्ज बराबर मेरा।
टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे,
डूब जाता है कभी मुझमे समन्दर मेरा।
किसी सेहरा में बिछड़ जायेंगे सब यार मेरे,
किसी जंगल में भटक जाएगा लश्कर मेरा।
बावफा था तो मुझे पूछनेवाले भी न थे,
बेवफा हूं तो हुआ नाम भी घर-घर मेरा।
कितने हंसते हुए मोसम अभी आते लेकिन,
एक ही धुप ने कुम्हला दिया मंजर मेरा।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

इंसान को इंसान होना चाहिए!

बस यहां इंसान को इंसान होना चाहिए।

आदमी-आदमी का भी सम्मान होना चाहिए,

जिन्दगी को प्यार का उनवान होना चाहिए!

नेता-फरिस्ता-देवता,भग्वान और अवतार क्यों?

बस यहां इंसान को इंसान होना चाहिए!

क्या यही बस जरूरते है-रोटियां-कपड़े-मकां,

ाथ में होठो पे भी मुस्कान होना चाहिए!

कोई पहले,कोई आखिर-सब मरेंगे-सच यही,

पर बिच में तो जीने का सम्मान होना चाहिए!

बारूद के इस गांव में जीने की बस एक राह है,

अब मोहब्बत का भी रास्ता आसन होना चाहिए!

बस यह इंसान को इंसान होना चाहिए!

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

कर्तव्य को क्यों छोड़े!

गाय और सांप दो अलग-अलग प्राणी है।लेकिन दोनों की प्रकृति में बड़ा अन्तर है.गाय घास खाती है,इसके बावजूद वह दूध देती है जबकि सांप दूध पीकर भी जहर उगलता है.बस यही अन्तर सज्जन और दुर्जन में है.सज्जन व्यक्ति गाय की भांति होता है जो अपने उपकारी के बदले में सवाई चीज दिए बिना नही रहता तथा दुर्जन सांप की भांति है.जो दूध पीकर भी अन्दर जहर उगलता है.नदी के जल में गिरे बिच्छू को बचाने का प्रयास किया जाय,फ़िर भी बिच्छू अपने काटने के स्वभाव को नही छोड़ता.तो फ़िर सज्जन अपने बचाने का स्वभाव को क्यों छोड़े?

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

हम देश है राधा-किशन के,प्रेम ही पैगाम है!

हम देश है राध-किशन के, प्रेम ही पैगाम है,

फ़िर जो दुश्मन न माने,जंग ही अंजाम है!

  • दोस्तों,हमारे प्यारे मुल्क पर
    पड़ोसी एक के बाद एक आतंकवाद
    के हमले करा रहा है,
    जबकि वह ख़ुद आतंकियों के
    पाप का बोझ उठा रहा है.
    उसके भी हजारो मासूम
    आतंक की आग में जल गये!
    बारूद के शोलो में उनके
    भी अमनो-चैन पिघल गये,
    फ़िर भी नही आ रही है उसे समझ!
    बेकार में वह दहशत के
    जाल में गया है उलझ!
    अरे यह टेरेरिज्म सिर्फ़ वन-वे होता है,
    जो जाता है लोट नही पाता,
    वजूद अपना खोता है.
    और दोस्तों किसने कहा
    की आतंक दीनो-ईमान है?
    हर धरम बस यही कहता है
    की मुहब्बत ही उसका पैगाम है.
    इस दुनिया में जिंदगानी है चार दिन,
    तो क्यों नफरतों में गंवा दे इसे,
    आते नही है इश्क
    के बार-बार दिन!
    हमारी तो दोस्तों राय है यही!
    जो बात हमारे फकीरों-संतो ने है
    कही-यह दुनिया फानी है,
    आनी-जानी है,
    जो जिन्दगी मिली है,
    उसमे गुलो को छांट लो,
    प्यार की खुशबू है जो
    उसे आपस में बांट लो!
    एक शेर दोस्तों पेश है
    बक्शी है उसने जिन्दगी,
    तो इसे कुछ नाम दे,
    इश्क बन्दा,इश्क रब है,
    इसे इश्क का ही काम दे!
    आज भी खतरे है मुल्क को
    अन्दर-बाहर बेहिसाब!
    ये हमले होते क्यों है?
    यह भी हमें जानना होगा की
    हम लापरवाह हो सोते है क्यों?
    अंत में माहोल बदलने
    के लिए यह शेर पढ़े:
    आज सीमा पर
    हमारे जंग का आसार है,
    मगर पहले उन्हें पकडो,
    जो देश के गद्दार है!

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

वक्त नही.

हर खुशी है लोगो के दामन में पर एक हसी के लिए वक्त नही.दिन रात दोड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए ही वक्त नही.सारे नाम मोबाईल में है पर दोस्ती के लिए वक्त नही गैरो की क्या बात करे जब अपनों के लिए ही वक्त नही.आंखो में है नींद बरी पर सोने का वक्त नही.पैसो की दोड़ में ऐसी दोड़ की थकने का भी वक्त नही.दिल है गमो से भरा हुआ पर रोने का भी वक्त नही.पराये एहसासों के लिए क़द्र करने जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.तू ही बता ऐ जिन्दगी इस जिन्दगी का क्या होगा.की हर पल मरने वालो की जीने के लिए भी वक्त नही.

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

एक छोटी सी जिंदगी!

जिंदगी बहुत छोटी है और समय जीवन की कसोटी है.फ़िर छोटी सी जिंदगी में बैर-विरोध क्यों?इतना क्रोध क्यों?हमारे पास मुठ्ठी भर वक्त है.अच्छा जिए,प्रेम देकर जिए,प्रेम लेकर जिए.कितने साल जिए-ये महत्वपूर्ण नही है,अपितु किस भावः दशा को लेकर जिए-यह महत्वपूर्ण है.जिंदगी में लंबाई का नही,गहराई का महत्व होता है.दो दिन ही जी.लेकिन सिर का ताज बनकर जी या फ़िर महाराज बनकर जी.आँखों में प्रेम रखकर जी और होठो पर मुस्कान रखकर जी.इस शरीर को बनने में भले ही ९ माह का वक्त लगा हो,लेकिन मिटने में १ मिनिट का भी वक्त नही लगेगा.यह तो मिट्टी का कच्चा घड़ा है.पानी भरते ही बिखर जाएगा.लेकिन आशचर्य है की यहां पल भर का भी भरोसा नही है और आदमी सोचता है की वह नही मरेगा.ऑरों को मरता हुआ रोज देखता है और सोचता है की मै थोड़ी मरनेवाला हूं। मै तो गिननेवाला हूं की ये भी मर गया.

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

दिल की तनहाइओ से,

गरमिये-हसरते-नाकाम से जल जाते है, हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते है!जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ,न जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते है!उसका किरदार परख लेना यकीं से पहले,मेरे बारे में बुरा तुमसे जो कहता होगा!मौत खामोश है चुप रहने चुप लग जायेगी,जिंदगी आवाज है,बाते करो,बाते करो!पहनाता है पत्तो का कफ़न डुबे हुए को,दरिया के किनारे पे जो सुखा सा शजर है!साँस दर साँस सुलिया थी मगर,इश्क में कब किसी की जां निकली!मै हवादिस में बचा हूं कैसे,ये तो दुआओं का असर लगता है!लकीरे ये कैसे गई है बदल,जो मज़बूरी में हिजरत कर गई है,लिपट कर रोये थे दीवारों-दर से!एक लफ्ज में दफ्तर लिखना,ख़त उसे सोच समझकर लिखना!

बुधवार, 12 नवंबर 2008

तिमिर का विनाश!

पीपल की डाली पर उतरी है शाम,कर रही दिशाए अब प्रणाम,दिन भर की थकी अभी लोटी है नाव,पर्वत पर डाल रही रश्मिया पड़ाव,सूरज ने किरणों को फेक दी लगाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!टूटे प्रतिबिम्ब कुछ समेट रही झील,दिनकर की कैमरे की ख़त्म हुयी रील,'दीपक'संग करेगी,रात भर मुकाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!आतंक-अंधियारा कर रहा विनाश,फी भी है जीवंत 'दीप'का प्रकाश,अंधियारा हो गया,स्वंय बदनाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!सूरज उगाने का करे सब प्रयास,सहज संभव है करना तिमिर का विनाश,सूरज को किरणों की,सोंप दो लगाम,फ़िर पीपल की डाली पर न उतरेगी शाम! "एक शेयर कहना चाहता हूं" पानी में पत्थर मत मारो, इसे कोई और भी पीता है, यूं उदास न रहो आप, क्योंकि आप को देख कर कोई और भी जीता है!

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

हर दिन, हर सुबह एक नया जीवन है,

हर दिन,हर सुबह एक नया जीवन है,इसलिए नए जीवन की शुरुआत पुराने मन से मत करो,नए जीवन के साथ मन भी नया होना चाहिए.हो सकता है रातभर में तुम्हारा दुसमन मित्र बन गया हो और मित्र दुसमन.इसलिए जब सुबह किसी से मिलो तो एकदम अजनबी की तरह मिलो.कोई अपनी पूर्व-धारणा लेकर मत मिलो और सुबह प्रभु से प्राथना में कहो,प्रभु!मै इस दिन के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ की आज के दिन कोई कितना भी भारकाए,मै शांत रहूँगा एवं आग का जबाब पानी से दूंगा!अगर आप लोग हमारी इस बात से सहमत है.तो फ़िर आईये हम सब मिलकर ये संकल्प ले और पूर्व की धारणाओं-विचारों और पुरानी गिले-शिकवे को दीपावली के इस महापर्व की ज्योत में जलाकर एक नई सुबह एक नया जीवन की शुरुआत करे!आपको एवं आपके सहपरिवार को दीपावली की शुभकामनाये!

रविवार, 26 अक्तूबर 2008

अत्याधुनिकता ने परिवेश को कलुषित किया है

बदलते परिवेश में आज की अधिकांश लड़कियों में अनैतिकता व अनुशासन्हीनता भी अपर्त्याशित रूप से पनपी है। फिल्मो व पाश्चत्य संस्कृति के परिपेछ्य में हर लडकी स्वंय को मार्दन समझने लगी है नई उपज की नई पौध ये लड़कियों पहनने, ओड़ने का सलीका, बातचीत की तहजीब व आदरभाव जैसे आदर्श मनको को त्यागकर मुंहफट,गैलिहाजी व दिग्भ्रमित हो चली है उनकी शक्तियों का सार्थक मापदंड निश्चित नही हो पाया है। दरअसल आज लड़कियों में अत्याधुनिकता व व्यापक सोंच की स्वतंत्रता तो बढ़ी है, लेकिन यह सब जागरूक व संवेदनशील नारी की असीमता के सर्वथा खिलाफ है। भारतिय सांस्कृतिक परिवेश में जीते हुए पाश्चात्य की नक़ल सरासर बेमानी व मानसिक दिवालियपन की परिचायक है।चंद अपवादों को छोरकर अमूमन हर लडकी स्वंय को किसी फिल्मी नायिका से कम नही समझती है। घर के आँगन से स्कूल, कॉलेज कैम्पस तक सवर्त्र ही अयाधुनिकता का एक पर्तिस्पर्धात्मक नाजारा देखने व सुनने को मिलता है, प्रत्येक लडकी फैशन का खूबसूरत जामा पहनकर स्वंय को श्रेष्ठ साबित करने हेतु उत्सुक व प्रयास्त है। नैतिक मूल्यों की धज्जिया उडातीये लडकिया भावनाओं के धरातल पर भी संवेदन शून्य हो चली है। आज हर लडकी दोरा यह सोंचा जाना आवश्यक है वह अपने परिबार व समाज के परती आख़िर कहां तक चिंतितसमपिर्त नजर आती है नि:संदेह नतीजा सिफर ही निकलेगा येसी विसंगति व त्रासदायी परिस्थितियों के फल स्वरूप ही चुनोतियों व संघर्षो के बिच फासले आज बद गये है, इन सबके लिए आख़िर कोन जिम्मेदार व कसूरवार है? लडकी के माता-पिता, उनके गुरु, आधुनिक परिवेश या फ़िर स्वंय लडकिया? जहाँ तक माता-पिता का सवाल है 'कहना उनका फर्ज है और जीना मेरी स्वतंत्रा बेटियाँ यही सोंचकर अपने माता-पिता के कसावट भरे संस्कारों को निष्प्रभावी व निर्थक सिद्ध कर रही है; उधर गुरु व शिष्या के बिच आदरभाव व शालीनता का तारतम्य टूट चुका है। लडकियाँ प्रसंगवश अपने गुरु का मखोल उडाती नजर आती है। अत्याधुनिक लड़कियों ने सारे माहोल को ही सराकर रख दिया है, इस कड़वी सचाई को आज हर लडकी द्रोरा सहज ही स्वीकारना होगा?

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

तुम्हारा प्यार

तुम बहुत याद आती हो
ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile