फ़िर जो दुश्मन न माने,जंग ही अंजाम है!
- दोस्तों,हमारे प्यारे मुल्क पर पड़ोसी एक के बाद एक आतंकवाद के हमले करा रहा है, जबकि वह ख़ुद आतंकियों के पाप का बोझ उठा रहा है. उसके भी हजारो मासूम आतंक की आग में जल गये! बारूद के शोलो में उनके भी अमनो-चैन पिघल गये, फ़िर भी नही आ रही है उसे समझ! बेकार में वह दहशत के जाल में गया है उलझ! अरे यह टेरेरिज्म सिर्फ़ वन-वे होता है, जो जाता है लोट नही पाता, वजूद अपना खोता है. और दोस्तों किसने कहा की आतंक दीनो-ईमान है? हर धरम बस यही कहता है की मुहब्बत ही उसका पैगाम है. इस दुनिया में जिंदगानी है चार दिन, तो क्यों नफरतों में गंवा दे इसे, आते नही है इश्क के बार-बार दिन! हमारी तो दोस्तों राय है यही! जो बात हमारे फकीरों-संतो ने है कही-यह दुनिया फानी है, आनी-जानी है, जो जिन्दगी मिली है, उसमे गुलो को छांट लो, प्यार की खुशबू है जो उसे आपस में बांट लो! एक शेर दोस्तों पेश है बक्शी है उसने जिन्दगी, तो इसे कुछ नाम दे, इश्क बन्दा,इश्क रब है, इसे इश्क का ही काम दे! आज भी खतरे है मुल्क को अन्दर-बाहर बेहिसाब! ये हमले होते क्यों है? यह भी हमें जानना होगा की हम लापरवाह हो सोते है क्यों? अंत में माहोल बदलने के लिए यह शेर पढ़े: आज सीमा पर हमारे जंग का आसार है, मगर पहले उन्हें पकडो, जो देश के गद्दार है!
बहुत ही सुंदर कहा आप ने .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
bahut hi achhi lagi rachna
जवाब देंहटाएंmaine aapka blog dekha...aapke blog ka varnan jo aapne diya hai wo jahan tak mujhe gyaat hai rashmi jee ki panktiyan hain...mujhe lagta hai ki aapko apne blog ka parichay apne hi shabdon me dena chahiye...
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