रविवार, 21 दिसंबर 2008

कभी साया है,कभी धुप मुकद्दर मेरा,

कभी साया है,कभी धुप मुकद्दर मेरा,
होता रहता है यूं ही कर्ज बराबर मेरा।
टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे,
डूब जाता है कभी मुझमे समन्दर मेरा।
किसी सेहरा में बिछड़ जायेंगे सब यार मेरे,
किसी जंगल में भटक जाएगा लश्कर मेरा।
बावफा था तो मुझे पूछनेवाले भी न थे,
बेवफा हूं तो हुआ नाम भी घर-घर मेरा।
कितने हंसते हुए मोसम अभी आते लेकिन,
एक ही धुप ने कुम्हला दिया मंजर मेरा।

10 टिप्‍पणियां:

  1. अरे यार बडा अच्छा फोटो लगाया है . हम तो इसी को देखकर भावुक हो गए . अच्छा लिखा !

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  2. बहुत बढिया....फोटो भी सुंदर है।

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  3. बहुत सुंदर लिख आप ने , आप इस फ़ोटो को पहेली के रुप मे पुछ सकते है, यह फ़ोटो किस का है??
    अगर मालुम ना हो तो बताना, वेसे आप को पता तो होगा ही.
    धन्यवाद

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  4. बेनामी24/12/08 20:36

    जीवन में कभी साया और कभी धूप से गुजरना पड़ता है. इसी का नाम जीवन है.

    जवाब देंहटाएं

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ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile