गुरुवार, 27 नवंबर 2008
दिल की तनहाइओ से,
गरमिये-हसरते-नाकाम से जल जाते है, हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते है!जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ,न जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते है!उसका किरदार परख लेना यकीं से पहले,मेरे बारे में बुरा तुमसे जो कहता होगा!मौत खामोश है चुप रहने चुप लग जायेगी,जिंदगी आवाज है,बाते करो,बाते करो!पहनाता है पत्तो का कफ़न डुबे हुए को,दरिया के किनारे पे जो सुखा सा शजर है!साँस दर साँस सुलिया थी मगर,इश्क में कब किसी की जां निकली!मै हवादिस में बचा हूं कैसे,ये तो दुआओं का असर लगता है!लकीरे ये कैसे गई है बदल,जो मज़बूरी में हिजरत कर गई है,लिपट कर रोये थे दीवारों-दर से!एक लफ्ज में दफ्तर लिखना,ख़त उसे सोच समझकर लिखना!
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धन्यवाद सुंदर रचना के लिये
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना है..जरा पैराग्राफ ऒऊआ ळाआइणा ब्रेक पर ध्यान दो, तो अति पठनीय हो जाये.,
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