बुधवार, 12 नवंबर 2008

तिमिर का विनाश!

पीपल की डाली पर उतरी है शाम,कर रही दिशाए अब प्रणाम,दिन भर की थकी अभी लोटी है नाव,पर्वत पर डाल रही रश्मिया पड़ाव,सूरज ने किरणों को फेक दी लगाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!टूटे प्रतिबिम्ब कुछ समेट रही झील,दिनकर की कैमरे की ख़त्म हुयी रील,'दीपक'संग करेगी,रात भर मुकाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!आतंक-अंधियारा कर रहा विनाश,फी भी है जीवंत 'दीप'का प्रकाश,अंधियारा हो गया,स्वंय बदनाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!सूरज उगाने का करे सब प्रयास,सहज संभव है करना तिमिर का विनाश,सूरज को किरणों की,सोंप दो लगाम,फ़िर पीपल की डाली पर न उतरेगी शाम! "एक शेयर कहना चाहता हूं" पानी में पत्थर मत मारो, इसे कोई और भी पीता है, यूं उदास न रहो आप, क्योंकि आप को देख कर कोई और भी जीता है!

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छी कंपोजिशन तैयार की है आपने लिखते जाओ

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  2. क्या बात है, अति सुंदर.
    धन्यवाद

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  3. बढिया अद्भुत वर्णन

    बहुत लंबे अरसे तक ब्लॉग जगत से गायब रहने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ अब पुन: अपनी कलम के साथ हाज़िर हूँ |

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  4. kiyaa baat hai bouth aache


    visit my site

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ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile