सोमवार, 29 दिसंबर 2008

मैने ख़ुद को जानकर तन्हा किया है!

अक्से-यादे-यार को धुंधला किया है,
मैंने ख़ुद को जानकर तन्हा किया है।
भूल कर तुझको पशेमा हूँ बहुत मै,
लोग कहते है बहुत अच्छा किया है।
दिन ढले और शाम का दीदार हो फ़िर,
काम दिन भर इसलिए इतना किया है।
जितनी शम्मे है हवा को सोंप दूँ फ़िर,
कोन पूछेगा की क्यों एसा किया है।
शहर ये आबाद था शाहिद हूँ मै भी,
किस की वहशत ने इसे सहरा किया है।


13 टिप्‍पणियां:

  1. इधर परिवारिक कारणों से व्यस्त रहा, अतः ब्लॉगजगत से दूरी रही..क्षमाप्रार्थी हूँ.

    अब धीरे धीरे पुनः वापसी का प्रयास है.

    नियमित लिखें. आपको शुभकामनाऐं.

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  2. बहुत ही सुंदर बिंदास . बधाई.

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  3. बहोत ही उम्दा ग़ज़ल बहोत खूब.........

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  4. बढ़िया !
    घुघूती बासूती

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  5. बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । आपकी पंिक्तयां वास्तिवकता को िजस सुंदर तरीके से अिभव्यक्त करती हैं, वह बडा हृदयस्पशीॆ है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मिवश्वास के सहारे जीतंे िजंदगी की जंग-समय हो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  6. बहुत ही सुंदर कविता आप ने लिखी है.
    धन्यवाद

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  7. बहुत अच्छा लिखा है आपने .........

    मेरी शुभकामनाएं

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  8. परिस्थितिया तन्हाई को जन्म देती है और तनहा शख्स अवाक होता है,प्रश्न में डूबा रहता है.......जिसे आपने बहुत खुबसूरत शब्द दिए हैं

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  9. नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

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  10. अक्से-यादे-यार को धुंधला किया है,
    मैंने ख़ुद को जानकर तन्हा किया है।
    भूल कर तुझको पशेमा हूँ बहुत मै,
    लोग कहते है बहुत अच्छा किया है।

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  11. Bas wahi hai tumhari fariyaad sunne wala
    jis ne sabko paida kiya hai

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ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile