शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
वक्त नही.
हर खुशी है लोगो के दामन में पर एक हसी के लिए वक्त नही.दिन रात दोड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए ही वक्त नही.सारे नाम मोबाईल में है पर दोस्ती के लिए वक्त नही गैरो की क्या बात करे जब अपनों के लिए ही वक्त नही.आंखो में है नींद बरी पर सोने का वक्त नही.पैसो की दोड़ में ऐसी दोड़ की थकने का भी वक्त नही.दिल है गमो से भरा हुआ पर रोने का भी वक्त नही.पराये एहसासों के लिए क़द्र करने जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.तू ही बता ऐ जिन्दगी इस जिन्दगी का क्या होगा.की हर पल मरने वालो की जीने के लिए भी वक्त नही.
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सही बात है।बढिया लिखा ।
जवाब देंहटाएंतभी तो मैंने भी कहा है....वक्त हो तो पास बैठो,कुछ दिल की बात करूँ..........जाने ये वक्त किस आपा-धापी में गम हो गया है......अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग करते हुए कम्प्यूटर से चिपके रह कर हम भी कितने ही अपनों का ख्याल नही रख पाए , ना ही उन्हें ........... बस आप को इस टिप्पणी के बाद सभा यहीं समाप्त ।
जवाब देंहटाएंबहुत खुब.बहुत सही लिखा आप ने .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
hum sabhi ki bhavnayein kuch aisi hi hain..
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