मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

एक छोटी सी जिंदगी!

जिंदगी बहुत छोटी है और समय जीवन की कसोटी है.फ़िर छोटी सी जिंदगी में बैर-विरोध क्यों?इतना क्रोध क्यों?हमारे पास मुठ्ठी भर वक्त है.अच्छा जिए,प्रेम देकर जिए,प्रेम लेकर जिए.कितने साल जिए-ये महत्वपूर्ण नही है,अपितु किस भावः दशा को लेकर जिए-यह महत्वपूर्ण है.जिंदगी में लंबाई का नही,गहराई का महत्व होता है.दो दिन ही जी.लेकिन सिर का ताज बनकर जी या फ़िर महाराज बनकर जी.आँखों में प्रेम रखकर जी और होठो पर मुस्कान रखकर जी.इस शरीर को बनने में भले ही ९ माह का वक्त लगा हो,लेकिन मिटने में १ मिनिट का भी वक्त नही लगेगा.यह तो मिट्टी का कच्चा घड़ा है.पानी भरते ही बिखर जाएगा.लेकिन आशचर्य है की यहां पल भर का भी भरोसा नही है और आदमी सोचता है की वह नही मरेगा.ऑरों को मरता हुआ रोज देखता है और सोचता है की मै थोड़ी मरनेवाला हूं। मै तो गिननेवाला हूं की ये भी मर गया.

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुब लिखा आप ने हमे अगले पल का पता नही, लेकिन ......
    धन्यवाद

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  2. बिल्कुल सही लिखा है. इंसान की ज़िंदगी में क्वालिटी का महत्व होता है.

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  3. कितनी सरलता से इतनी बड़ी बात आपने कह दी.....
    जब मन की बात हो,तो मैं साथ हो ही लेती हूँ,
    आम परिवेश इससे अधिक कुछ नहीं चाहता.......बहुत बढिया

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ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile