गुरुवार, 27 नवंबर 2008

दिल की तनहाइओ से,

गरमिये-हसरते-नाकाम से जल जाते है, हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते है!जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ,न जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते है!उसका किरदार परख लेना यकीं से पहले,मेरे बारे में बुरा तुमसे जो कहता होगा!मौत खामोश है चुप रहने चुप लग जायेगी,जिंदगी आवाज है,बाते करो,बाते करो!पहनाता है पत्तो का कफ़न डुबे हुए को,दरिया के किनारे पे जो सुखा सा शजर है!साँस दर साँस सुलिया थी मगर,इश्क में कब किसी की जां निकली!मै हवादिस में बचा हूं कैसे,ये तो दुआओं का असर लगता है!लकीरे ये कैसे गई है बदल,जो मज़बूरी में हिजरत कर गई है,लिपट कर रोये थे दीवारों-दर से!एक लफ्ज में दफ्तर लिखना,ख़त उसे सोच समझकर लिखना!

बुधवार, 12 नवंबर 2008

तिमिर का विनाश!

पीपल की डाली पर उतरी है शाम,कर रही दिशाए अब प्रणाम,दिन भर की थकी अभी लोटी है नाव,पर्वत पर डाल रही रश्मिया पड़ाव,सूरज ने किरणों को फेक दी लगाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!टूटे प्रतिबिम्ब कुछ समेट रही झील,दिनकर की कैमरे की ख़त्म हुयी रील,'दीपक'संग करेगी,रात भर मुकाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!आतंक-अंधियारा कर रहा विनाश,फी भी है जीवंत 'दीप'का प्रकाश,अंधियारा हो गया,स्वंय बदनाम,पीपल की डाली पर उतरी है शाम!सूरज उगाने का करे सब प्रयास,सहज संभव है करना तिमिर का विनाश,सूरज को किरणों की,सोंप दो लगाम,फ़िर पीपल की डाली पर न उतरेगी शाम! "एक शेयर कहना चाहता हूं" पानी में पत्थर मत मारो, इसे कोई और भी पीता है, यूं उदास न रहो आप, क्योंकि आप को देख कर कोई और भी जीता है!
ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ pimp myspace profile