नही है जवानो की अलमस्त टोलियां
न ठट्ठा,न ठिठोली,न मदमस्त बोलियां
'गोलियां'खेल रहे बच्चे अखाडो में
पहलवान खा रहे.ताकत की 'गोलियां'
'अर्थ'के 'अनर्थ' ने यों खेली है गोटियां
नल में है जल नही,प्यासी पड़ी टोटियां
मोबाईल खाइए,और प्रभुगुण गायिए
सस्ते है मोबाईल,महंगी है रोटियां ।।
दुबककर बैठी है बस्ती की गोरियां
तरसते बच्चे है सुनने को लोरियां
जब से बना है पुलिस थाना बस्ती में
बढ़ी है लूटपाट,और बढ़ी है चोरियां।।
नही चाचिया भर छाछ,दही की कटोरियां
न गरम-गरम पुरियां,न खस्ता कचोरियां
पण पराग खायी और भूल जायिए,
कभी यहां सजती थी पान की गिलोरियां।।
नदियों को लील गयी सीमेंट की बोरियां
कंक्रीट में दब गयी नेह-बंध डोरियां
नही बरगद का ठांव,नही पीपल की छांव
नही सुघर सजे पाँव,न गांव है,न गोरियां।।
वाह ! वाह ! यथार्थ को चित्रित करती सार्थक और सुंदर रचना है. बधाई.
जवाब देंहटाएंis bhashaa ne is kavita ke saundarya ko duguna kar diya hai..........behad achhi
जवाब देंहटाएंपिंटू बहुत सुंदर कविता कही, ऎसा ही लिखो बहुत नाम कमाओगे.. एक सलाह देनी है मानो या ना मानो, जो टूल आप ने हिन्दी लिखने का सब से नीचे लगाया है, उसे या तो थोडा ऊपर लगाओ या फ़िर हटा दो, क्योकि उस का उपयोग कोई नही करता.क्योकि जब भी तुम्हारे ब्लांग पर आओ जो सब से पहले यह हमे आप के चरणो मे ले जाता है , यह सब उसी टूल के कारण, ओर फ़िर लोग भाग जाते हे बिना पढे.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ठीक है अंकल हमने आप की बात मान ली!और हमें उमीद है की आप मुझे आगे भी इसी तरह ध्यान दिलाते रहेंगे!
जवाब देंहटाएंयथार्थ और सार्थकसामयिक विषय पर आपने बखूबी ध्यान आकर्षित किया है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर तीखा धारदार व्यंग वाह वाह
प्रदीप मनोरिया 09425132060
http://manoria.blogspot.com
http://kundkundkahan.blogspot.com
वाह.वाह.......वाह.......वाह.......क्या कहने.....ये तो कमाल हो गया.......धोती फाड़ कर रुमाल हो गया..........बस यूँ कि मजा ही आ गया......इस स्वादिष्ट रचना का डिनर कर के..........!!
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