लोग कहते है की लड़कियां अभिशाप होती है,और इसलिए लोग लड़की का पता चलते ही उसे जन्म लेने से पहले ही उसे मार दिया जाता है। लेकिन मै ये कहता हूं की लड़कियां क्या नही कर सकती है.बस उसे मौका तो मिलना चाहिए। लड़कियां भी तो बेटे होने का फर्ज निभा सकती है।
बात हमारे आसपास के गांव की है और मै जिस दिन से सुना मुझे रहा नही गया,कभी ओ हमारे साथ पढ़ती भी थी।
ओ लड़की दो बहने है .और उसकी मां नही थी। और अब बाप भी इस दुनिया में नही रहा.उसका बाप खेती-किसानी करता था,और किसी तरह घर-परिवार चलता था,और काफी दिनों से वह हमेसा बीमार रहता था।
बड़ी बेटी जो पढ़ती थी फ़िर उसने पढ़ाई छोड़कर एक कपड़े की दुकान में काम करने लगी और अपने पिता,और अपने छोटी बहन की मदद करने लगी। फ़िर कुछ दिनों पहले उसकी शादी हो गयी और ओ अपने ससुराल चली गयी। फ़िर अपने बीमार पिता, और घर का खर्च जिम्मा छोटी बेटी जो अभी १३.साल की है पर आ गयी फ़िर उसने भी पढ़ाई छोड़ कर एक कपड़े की दुकान में काम करने लगी और किसी तरह घर चलाने लगी। अभी कुछ दिन पहले ही उसका बाप इस दुनिया से चल बसा। और दोनों बेटियों ने बाप की अर्थी को कंधा भी दिया और छोटी बेटी ने बाप को अग्नि भी दिया।
अब आप ही बताये की बेटी क्या कुछ नही कर सकती है।
एक संदेश जो मै आप सभी से कहना चाहता हूं-
माना की लड़के घर का चिराग होता है,
तो लड़की भी तो उस चिराग की रौशनी होती है।
और जब लड़की बड़े होने पर उसकी शादी हो जाती है,
और जब वह मां बन जाती है,
तो मां के पैरो के निचे तो जन्नत होती है।
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
सोमवार, 26 जनवरी 2009
आज गणतंत्र दिवस
जय हिंद
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा
हम बुलबुले है इसकी ये गुलिस्ता हमारा
वंदे मातरम।।
यह सिर्फ़ झंडा नही-दिल है हिंदुस्तान का!
यह है,तो हम है...
यह झंडा हमारी आन का...
हमारे मान का...
हमारे स्वाभिमान का!
सिर्फ़ सिर झुकाना नही...
दिलो में बसाना इसको!
हर आतंक के कहर से बचाना इसको!
चाहे सांसे थमे,धड़कने ठहर जाएं...
धरती पर ही नही...
आसमां पर भी फहराना इसको!
अपने दिलो में भी फहराना इसको!
वंदे मातरम।।
सोमवार, 19 जनवरी 2009
नल में है जल नही,प्यासी पड़ी टोटियां!
नही है जवानो की अलमस्त टोलियां
न ठट्ठा,न ठिठोली,न मदमस्त बोलियां
'गोलियां'खेल रहे बच्चे अखाडो में
पहलवान खा रहे.ताकत की 'गोलियां'
'अर्थ'के 'अनर्थ' ने यों खेली है गोटियां
नल में है जल नही,प्यासी पड़ी टोटियां
मोबाईल खाइए,और प्रभुगुण गायिए
सस्ते है मोबाईल,महंगी है रोटियां ।।
दुबककर बैठी है बस्ती की गोरियां
तरसते बच्चे है सुनने को लोरियां
जब से बना है पुलिस थाना बस्ती में
बढ़ी है लूटपाट,और बढ़ी है चोरियां।।
नही चाचिया भर छाछ,दही की कटोरियां
न गरम-गरम पुरियां,न खस्ता कचोरियां
पण पराग खायी और भूल जायिए,
कभी यहां सजती थी पान की गिलोरियां।।
नदियों को लील गयी सीमेंट की बोरियां
कंक्रीट में दब गयी नेह-बंध डोरियां
नही बरगद का ठांव,नही पीपल की छांव
नही सुघर सजे पाँव,न गांव है,न गोरियां।।
न ठट्ठा,न ठिठोली,न मदमस्त बोलियां
'गोलियां'खेल रहे बच्चे अखाडो में
पहलवान खा रहे.ताकत की 'गोलियां'
'अर्थ'के 'अनर्थ' ने यों खेली है गोटियां
नल में है जल नही,प्यासी पड़ी टोटियां
मोबाईल खाइए,और प्रभुगुण गायिए
सस्ते है मोबाईल,महंगी है रोटियां ।।
दुबककर बैठी है बस्ती की गोरियां
तरसते बच्चे है सुनने को लोरियां
जब से बना है पुलिस थाना बस्ती में
बढ़ी है लूटपाट,और बढ़ी है चोरियां।।
नही चाचिया भर छाछ,दही की कटोरियां
न गरम-गरम पुरियां,न खस्ता कचोरियां
पण पराग खायी और भूल जायिए,
कभी यहां सजती थी पान की गिलोरियां।।
नदियों को लील गयी सीमेंट की बोरियां
कंक्रीट में दब गयी नेह-बंध डोरियां
नही बरगद का ठांव,नही पीपल की छांव
नही सुघर सजे पाँव,न गांव है,न गोरियां।।
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
मेरा हाथ...और मेरा इश्वर!
एक महिला बहुत गरीब थी.उसके पति ने भी उसे छोड़ दिया था।
आजीविका का कोई सहारा उसके पास नही दीखता था,
जब उसका मुकद्दमा अदालत में चला गया तो जज ने पूछा,
''श्रीमती जी ,क्या आपके पास गुजरे का कोई साधन है?
"श्रीमान!सच्च पूछिए तो मेरे पास तीन है"
"तीन!"जी हां ,एक-दो नही तीन!
"वे कोन-कोन से?
"मेरे हाथ,मेरी अच्छी सेहत और मेरा इश्वर
हमारा ईश्वर हमारा शरण और शक्ति है,
मुसीबत में बढ़ कर मददगार नही।
सोमवार, 12 जनवरी 2009
इस बहाने से देख ली दुनिया हमने!
जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने।
सबका अहवास वही है जो हमारा है आज,
ये अलग बात है की शिकवा किया तन्हा हमने।
ख़ुद पशेमान हुए ने उसे शर्मिंदा किया,
इश्क की वजह को क्या खूब निभाया हमने।
कोन सा कहर ये आंखो पे हुआ है नाजिम,
एक मुद्दत से कोई ख्वाब न देखा हमने।
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इसका मिलेगा ये न कभी सोचा हमने।
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने।
सबका अहवास वही है जो हमारा है आज,
ये अलग बात है की शिकवा किया तन्हा हमने।
ख़ुद पशेमान हुए ने उसे शर्मिंदा किया,
इश्क की वजह को क्या खूब निभाया हमने।
कोन सा कहर ये आंखो पे हुआ है नाजिम,
एक मुद्दत से कोई ख्वाब न देखा हमने।
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इसका मिलेगा ये न कभी सोचा हमने।
रविवार, 4 जनवरी 2009
तीन सहेलिया!
किसी गांव में तीन सहेलिया रहती थी.
विद्दा, दोलत और इज्जत
तीनो में बहुत घनिष्ठ मित्रता थी.एक दिन जब विदाई का समय आया तो विद्दा बोली-मै जा रही हूं.मुझसे मिलना हो तो मै किताबो में तथा विद्दानो के पास मिलूंगी.दोलत बोली-मै अमीरों के पास मिलूंगी.इसके बाद इज्जत की बारी आई तो वह कुछ न बोली.तो विद्दा और दोलत ने पूछा-तुम कही नही जा रही हो?तब इज्जत बोली-मै एक बार चली गई तो फ़िर वापस नही मिलूंगी।
विद्दा, दोलत और इज्जत
तीनो में बहुत घनिष्ठ मित्रता थी.एक दिन जब विदाई का समय आया तो विद्दा बोली-मै जा रही हूं.मुझसे मिलना हो तो मै किताबो में तथा विद्दानो के पास मिलूंगी.दोलत बोली-मै अमीरों के पास मिलूंगी.इसके बाद इज्जत की बारी आई तो वह कुछ न बोली.तो विद्दा और दोलत ने पूछा-तुम कही नही जा रही हो?तब इज्जत बोली-मै एक बार चली गई तो फ़िर वापस नही मिलूंगी।
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